जब करोना की महामारी हुई तो किसी को यह अहसास कभी न था कि यह इतना विदीर्ण रूप धारण करेगी। उस समय जीवन बहुत असामान्य हो गया, मौतों का सिलसिला कही नहीं रुकता नज़र नहीं आ रहा था। पूरे विश्व में तहलका मचा हुआ था। जीवन-मृत्यु का संघर्ष चारों ओर था। हर जगह गहन, घोर खौफ फैला हुआ था। मौत सामने कड़ी थी और आदमी विवश था। इसने सबको ही अपने घेरे में ले लिया था । सबकुछ अवर्णीय था। कोई पुस्तक इसका वर्णन नहीं कर पाएगी। विनाश कालीन अवस्था थी, कोई प्राकृतिक प्रकोप या बर्बादी इससे बड़ी कभी मानव इतिहास में नहीं हो सकती ! मैंने इस प्रसंग को यहां कविता के रुप में एक श्रीमिक की व्यथा में पिरोकर लिखने का लघु प्रयास किया है। यहाँ श्रमिक की विडंबना, व्यथा, पीड़ा, मजबूरी, बेबसी, वगैरह पर कुछ विचार रखे हैं।
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ISBN | 9781312381001 |
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Sprache | hin |
Cover | Kartonierter Einband (Kt) |
Verlag | Lulu Pr |
Jahr | 20230703 |
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