बिस्तर से दफ्तर तक, हृदय से आसमान तक और चुप्पी से लेकर नारेबाजी तक का सफर तय करने वाली स्त्री, आज भी सोचने, विचारने और स्त्री दिवस मनाने का ही नाम बनकर रह गई है। जहां एक ओर स्त्री विमर्श पर ढेरों किताबें लिखी जा रही हैं वहीं दूसरी ओर महिला दिवस का विज्ञापन अखबारों में अपनी जगह ढूंढ़ने का वर्षभर इंतजार करता रहता है। तब किसी समाज को, देश को खबर लगती है कि स्त्री का भी मत है, उसका भी मन है, उसकी भी आकांक्षाएं हैं, उसको भी सम्मानित करना है। यह पुस्तक स्त्री की सामाजि...
CHF 44.90